लंदन के प्रतिष्ठित विंबलडन कोर्ट पर जब जानिक सिनर ने अपनी ऐतिहासिक जीत दर्ज की, तो पूरे टेनिस जगत में खुशी की लहर दौड़ गई। उनकी मेहनत, लगन और शानदार खेल ने उन्हें सर्वोच्च मुकाम पर पहुँचाया। यह पल न केवल उनके करियर के लिए, बल्कि उनके देश के लिए भी गर्व का क्षण था। लेकिन इस शानदार विजय के जश्न के बीच, एक `एस्टरिस्क` (*) ने अचानक विवादों का साया डाल दिया। यह `एस्टरिस्क` ऑस्ट्रेलिया के टेनिस खिलाड़ी निक किर्गियोस ने अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था, और इसके मायने काफी गहरे और कटु थे।
निक किर्गियोस, अपनी टिप्पणियों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहते हैं।
किर्गियोस का `एस्टरिस्क` और उसका अर्थ
किर्गियोस का यह एक साधारण-सा दिखने वाला `एस्टरिस्क` दरअसल खेल जगत में उन खिलाड़ियों के नामों के आगे लगाया जाता है, जिनकी उपलब्धियों पर डोपिंग या संदिग्ध आचरण के कारण सवाल उठाए जाते हैं। यह सीधा-सीधा सिनर के उस पुराने `क्लोस्टेबोल` मामले की ओर इशारा था, जिसमें वे अतीत में फँसे थे। किर्गियोस ने इस ट्वीट के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की कि सिनर की विंबलडन जीत भी कहीं न कहीं उस पुराने विवाद से प्रभावित है, और इसलिए इसे पूर्ण रूप से `स्वच्छ` नहीं माना जा सकता।
जानिक सिनर का बेगुनाही का मामला
हालांकि, इस मामले में जानिक सिनर की बेगुनाही पूरी तरह से साबित हो चुकी है। वैश्विक डोपिंग-रोधी एजेंसी (WADA) ने खुद इस बात की पुष्टि की थी कि सिनर ने अनजाने में एक दूषित पूरक का सेवन किया था, और उनकी कोई गलत मंशा नहीं थी। इस पूरे प्रकरण की गहन जाँच की गई थी, और सिनर को किसी भी तरह के बड़े प्रतिबंध का सामना नहीं करना पड़ा। वे उस मुश्किल दौर से पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरे, और उनके प्रदर्शन में लगातार निखार आता गया। यह पूरी तरह से एक साफ-सुथरा मामला था, जहाँ खेल भावना और नियमों का सम्मान करते हुए निर्णय लिया गया था। सिनर ने न केवल अपनी बेगुनाही साबित की, बल्कि अपनी मानसिक दृढ़ता का भी परिचय दिया।
जानिक सिनर विंबलडन की जीत का जश्न मनाते हुए।
किर्गियोस की `धर्मयुद्ध` और प्रासंगिकता की तलाश
परंतु, लगता है कि निक किर्गियोस के लिए यह `क्लोस्टेबोल` मामला एक निजी जुनून बन गया है। वे न केवल सिनर, बल्कि महिला सिंगल्स विजेता इगा स्वियातेक पर भी इसी तरह के आरोपों (जिनसे वे भी पूरी तरह बरी हो चुकी हैं) को लेकर निशाना साध चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि अब 30 वर्ष की उम्र में, किर्गियोस का अपना टेनिस करियर लगभग समाप्त हो चुका है। वे कोर्ट पर अपनी प्रतिभा से ज़्यादा अपने विवादों और बेतुकी हरकतों के लिए जाने जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जानिक सिनर जैसे सफल खिलाड़ियों को निशाना बनाना ही उनके लिए सुर्खियां बटोरने का एकमात्र ज़रिया रह गया है। यह वाकई सोचने पर मजबूर करता है कि एक खिलाड़ी जिसने कभी टॉप लेवल पर खेलने का दम भरा था, अब दूसरों की सफलताओं पर नकारात्मक टिप्पणी करके अपनी पहचान बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। शायद उनका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी अब कोर्ट पर मौजूद खिलाड़ी नहीं, बल्कि प्रासंगिकता की बढ़ती हुई खामोशी है।
खेल भावना बनाम व्यक्तिगत कटुता
एक ओर जहाँ जानिक सिनर शांत स्वभाव, एकाग्रता और बेजोड़ खेल के दम पर विजय पथ पर अग्रसर हैं, वहीं निक किर्गियोस अपनी कुंठित टिप्पणियों और लगातार विवादों से घिरने की कोशिश करते दिखते हैं। यह खेल जगत में दो बिल्कुल विपरीत व्यक्तित्वों का चित्रण है: एक वह जो अपनी कला को निखार कर महानता हासिल करता है, और दूसरा वह जो दूसरों की चमक फीकी करने की कोशिश में अपनी ही रोशनी कम कर लेता है।
अंततः, खेल की दुनिया में सच्ची पहचान उस प्रदर्शन से बनती है जो कोर्ट पर दिखाया जाता है, उस दृढ़ संकल्प से जो चुनौतियों का सामना करता है, और उस खेल भावना से जो जीत और हार दोनों में सम्मान बनाए रखती है। सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया कोई `एस्टरिस्क` किसी खिलाड़ी की वास्तविक उपलब्धि को धूमिल नहीं कर सकता, खासकर जब सच्चाई उसके पक्ष में हो। सिनर की विंबलडन जीत एक बार फिर यह साबित करती है कि प्रतिभा और ईमानदारी का मेल हमेशा विवादों की धुंध को चीर कर चमकता है।