टेनिस की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो समय के साथ और भी चमकते हैं। स्विट्जरलैंड के दिग्गज खिलाड़ी स्टेन वावरिंका भी उन्हीं में से एक हैं। `स्टेन द मैन` के नाम से मशहूर, इस 40 वर्षीय एथलीट ने अपने करियर में कई मील के पत्थर स्थापित किए हैं, जिनमें तीन ग्रैंड स्लैम खिताब और डेविस कप जीत शामिल है। लेकिन हाल के परिणाम उनके शानदार अतीत से बिल्कुल विपरीत एक कहानी बयां कर रहे हैं। जिस खिलाड़ी ने अपनी दमदार फोरहैंड और सिंगल-हैंडेड बैकहैंड से विरोधियों को धूल चटाई थी, आज वह कोर्ट पर संघर्ष करता नजर आ रहा है।
वावरिंका की मौजूदा चुनौती: हार की लंबी लकीर
हाल ही में गुस्ताद में हुए एटीपी 250 टूर्नामेंट में, वावरिंका को कजाकिस्तान के युवा खिलाड़ी अलेक्जेंडर शेवचेंको के हाथों सीधे सेटों में 6/3, 6/2 से हार का सामना करना पड़ा। यह हार केवल एक मैच का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह पिछले 12 एटीपी मैचों में उनकी 11वीं हार थी। आंकड़े बताते हैं कि वह इस समय अपने करियर के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन 12 मैचों में उन्हें एकमात्र जीत भी कजाकिस्तान के ही खिलाड़ी टिमोफी स्कातोव के खिलाफ मिली थी। यह मुकाबला 1 अप्रैल 2025 को बुखारेस्ट में हुआ था, जिसमें वावरिंका ने एक कड़े संघर्ष के बाद 6/4, 6/7(5), 7:6(1) से जीत दर्ज की थी। यह जीत शायद उनके प्रशंसकों के लिए उम्मीद की एक किरण थी, लेकिन उसके बाद फिर से हार का सिलसिला शुरू हो गया।
जब उम्र और अनुभव टकराते हैं: एक दिग्गज का संघर्ष
खेल जगत में उम्र एक कड़वी सच्चाई है, खासकर ऐसे खेलों में जहाँ शारीरिक फिटनेस चरम पर होती है। 40 साल की उम्र में भी एटीपी टूर पर बने रहना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन लगातार हार यह सवाल उठाने लगी है कि क्या `स्टेन द मैन` का सुनहरा दौर अब ढलान पर है?
एक समय था जब वावरिंका विश्व के तीसरे नंबर के खिलाड़ी थे। उन्होंने राफेल नडाल, नोवाक जोकोविच और एंडी मरे जैसे दिग्गजों को ग्रैंड स्लैम फाइनल में शिकस्त दी है। ऑस्ट्रेलियन ओपन (2014), फ्रेंच ओपन (2015), और यूएस ओपन (2016) में उनकी जीतें उनके अडिग संकल्प और खेल कौशल का प्रमाण हैं। डेविस कप 2014 में स्विट्जरलैंड को खिताब दिलाना भी उनकी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन उपलब्धियों को देखते हुए, उनकी मौजूदा फॉर्म पर थोड़ी हैरानी तो होती ही है।
यह देखना दिलचस्प है कि एक चैंपियन खिलाड़ी, जिसने टेनिस के `बिग थ्री` के वर्चस्व को चुनौती दी थी, आज अपनी ही उम्र और नई पीढ़ी के खिलाड़ियों की चुनौती से कैसे निपट रहा है। क्या यह सिर्फ एक खराब दौर है या फिर यह संकेत है कि टेनिस कोर्ट पर उनका समय अब सीमित है? सिर्फ एक जीत के लिए इतने मैचों का इंतजार करना, उस खिलाड़ी के लिए निश्चित रूप से निराशाजनक होगा जिसने कभी बड़े मंच पर `असंभव` को संभव बनाया था।
क्या वापसी कर पाएंगे `स्टेन द मैन`?
वावरिंका जैसे अनुभवी खिलाड़ियों के लिए वापसी करना कभी आसान नहीं होता। शारीरिक रूप से चुस्त रहना, मानसिक दृढ़ता बनाए रखना और युवा तथा ऊर्जावान प्रतिद्वंद्वियों का सामना करना, यह सब एक बड़ी चुनौती है। हालांकि, टेनिस के इतिहास में कई ऐसे उदाहरण रहे हैं जब खिलाड़ियों ने अपनी उम्र के बावजूद वापसी की है और अपने प्रशंसकों को चौंकाया है।
क्या वावरिंका भी ऐसा कर पाएंगे? क्या हम एक बार फिर उनकी `वावरीफोरेनहैंड` और `वन-हैंडेड बैकहैंड` की जादूगरी देख पाएंगे जो विरोधियों को बेबस कर देती थी? केवल समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तो तय है: स्टेन वावरिंका ने टेनिस के इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया है, भले ही उनके करियर का यह अध्याय उतना शानदार न हो जितना उनके पिछले अध्याय थे। उनकी हर हार उनके प्रशंसकों के लिए दिल तोड़ने वाली होती है, लेकिन उनमें से हर कोई उम्मीद करता है कि `स्टेन द मैन` एक बार फिर अपनी पुरानी चमक बिखेरेंगे।