टेनिस जगत में ‘सतहों की समानता’ पर छिड़ी बहस: ज्वेरेव बनाम खेल के बदलते रंग

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Alexander Zverev in action on a tennis court

शंघाई मास्टर्स टेनिस टूर्नामेंट अक्सर रोमांचक मुकाबलों और अप्रत्याशित मोड़ों के लिए जाना जाता है। लेकिन इस बार, कोर्ट के बाहर एक ऐसी बहस छिड़ गई है जिसने टेनिस जगत में हलचल मचा दी है। यह बहस है खेल के मैदानों, यानी कोर्ट की सतहों की समानता को लेकर, और इसमें प्रमुख खिलाड़ियों के विचार आपस में टकरा रहे हैं। क्या टेनिस वाकई अपनी पारंपरिक विविधता खो रहा है, या यह सिर्फ बदलते समय की एक अनिवार्य आवश्यकता है?

ज्वेरेव का तीखा आरोप: क्या सभी कोर्ट एक जैसे हो रहे हैं?

विश्व के नंबर तीन खिलाड़ी, अलेक्जेंडर ज्वेरेव, ने इस मामले में एक तीखा बयान देकर आग में घी डाला है। उनका सीधा आरोप है कि आजकल सभी कोर्ट की सतहें एक जैसी होती जा रही हैं। उन्होंने कहा, “मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं जब हर जगह कोर्ट की गति एक समान हो। मुझे पता है कि टूर्नामेंट के निदेशक जानबूझकर इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि जानिक सिनर और कार्लोस अल्कराज़ जैसे खिलाड़ी हर टूर्नामेंट में जीतें।” ज्वेरेव का यह बयान टेनिस के उस मौलिक सिद्धांत पर सवाल उठाता है, जहाँ घास, क्ले और हार्ड कोर्ट की अलग-अलग विशेषताएँ खिलाड़ियों से भिन्न कौशल की माँग करती थीं। उनके अनुसार, अब इन तीनों सतहों पर लगभग एक ही तरीके से खेला जा सकता है।

फेडरर की गूँज और ज्वेरेव पर एक चुटकी व्यंग्य

यह कोई नया विचार नहीं है। कुछ दिन पहले ही महान खिलाड़ी रोजर फेडरर ने भी एंडी रॉडिक के पॉडकास्ट पर इसी तरह की चिंताएँ व्यक्त की थीं। फेडरर के शब्दों में भी कोर्ट की सतहों की `समानता` का मुद्दा गूँजा था, जिससे इस बहस को और बल मिला है।

हालांकि, यहाँ एक चुटकी व्यंग्य भी है। ज्वेरेव का 2025 का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है, और वह रैंकिंग में शीर्ष दो खिलाड़ियों (सिनर और अल्कराज़) से काफी पीछे हैं – शायद नंबर 50 के करीब। ऐसे में यह कहना कि `अंगूर खट्टे हैं` वाली लोमड़ी की कहानी याद दिलाता है, जहाँ सफलता न मिलने पर व्यवस्था पर दोष मढ़ दिया जाता है। आखिर, जब वह खुद विश्व के नंबर 2 खिलाड़ी थे और नियमित रूप से टूर्नामेंट जीत रहे थे, तब यह `सतहों की समानता` उन्हें क्यों नहीं खली? क्या यह समय की मांग है कि उन्हें अपनी शिकायतों से पहले अपने खेल में सुधार पर ध्यान देना चाहिए?

खेल के बदलते रंग: विविधता बनाम अनुकूलन क्षमता

परंपरागत रूप से, टेनिस में प्रत्येक सतह — घास, मिट्टी और कठोर कोर्ट — की अपनी अनूठी प्रकृति होती थी। घास पर गेंद नीची और तेज़ आती थी, मिट्टी पर धीमी और ऊँची उछलती थी, और कठोर कोर्ट इन दोनों के बीच का संतुलन प्रदान करता था। इन भिन्नताओं के कारण खिलाड़ियों को अपनी रणनीति और खेल शैली में लगातार बदलाव करना पड़ता था। विशेषज्ञ खिलाड़ी अपनी पसंदीदा सतह पर अजेय माने जाते थे।

लेकिन आज? ज्वेरेव के अनुसार, “आप लगभग हर सतह पर एक ही तरह से खेल सकते हैं।” यह स्थिति उन खिलाड़ियों के लिए चिंताजनक हो सकती है जिनकी खेल शैली किसी विशेष सतह के लिए अनुकूलित थी, जबकि यह उन बहुमुखी खिलाड़ियों के लिए फायदेमंद हो सकती है जो किसी भी स्थिति में ढल जाते हैं।

सिनर का शांत और पेशेवर जवाब

ज्वेरेव के इस आरोप का जवाब जानिक सिनर ने बेहद शांत और पेशेवर तरीके से दिया। उन्होंने कहा, “हम और कार्लोस कोर्ट नहीं बनाते हैं। यह हमारा फैसला नहीं है। हम हर स्थिति में खुद को ढालने की कोशिश करते हैं। मुझे लगता है कि हर सप्ताह सतह थोड़ी अलग होती है। मैंने तेज कोर्ट पर भी बेहतरीन टेनिस खेला है। लेकिन मैं कोर्ट नहीं बनाता, मैं सिर्फ अपना सर्वश्रेष्ठ टेनिस खेलने की कोशिश करता हूँ।” सिनर का जवाब आधुनिक टेनिस खिलाड़ी की अनुकूलन क्षमता और खेल के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह एक स्पष्ट संदेश है कि खिलाड़ी का काम है खेलना, न कि कोर्ट की विशेषताओं पर सवाल उठाना।

व्यापक तस्वीर: कोर्ट से परे शिकायतें और खेल का भविष्य

यह `सतहों की समानता` का मुद्दा, नोवाक जोकोविच की `व्यस्त टूर्नामेंट कैलेंडर` की शिकायत से भी जुड़ता है। जोकोविच ने भी शंघाई से ही तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, “बहुत से लोग शिकायत करते हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है तो कोई कुछ नहीं करता।” यह शिकायतें केवल कोर्ट की सतहों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि खेल के समग्र विकास और खिलाड़ियों पर बढ़ते दबाव को दर्शाती हैं। क्या टेनिस, दर्शकों को अधिक रोमांचक और लगातार शीर्ष खिलाड़ियों के बीच मुकाबले दिखाने की चाह में, अपनी कुछ पारंपरिक पहचान खो रहा है? या यह सिर्फ एक प्राकृतिक विकास है, जिसके लिए खिलाड़ियों को अनुकूलन करना ही होगा, जैसा कि सिनर का मानना है?

एक तरफ ज्वेरेव जैसे खिलाड़ी हैं जो खेल में विविधता और चुनौती को बनाए रखने की वकालत कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ सिनर जैसे युवा खिलाड़ी हैं जो परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने में विश्वास रखते हैं। इस बहस का निष्कर्ष चाहे जो भी हो, यह स्पष्ट है कि टेनिस का खेल लगातार बदल रहा है। क्या हम एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ हर कोर्ट पर एक ही तरह का धुआंधार पावर-गेम देखने को मिलेगा, या फिर आयोजक खिलाड़ियों की चिंताओं को सुनकर सतहों में फिर से अधिक विविधता लाएँगे? समय ही बताएगा कि टेनिस का अगला `खेल` क्या होगा।

रोहित कपूर

रोहित कपूर बैंगलोर से हैं और पंद्रह साल के अनुभव के साथ खेल पत्रकारिता के दिग्गज हैं। टेनिस और बैडमिंटन में विशेषज्ञ हैं। उन्होंने खेल पर एक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल बनाया है, जहां वे महत्वपूर्ण मैचों और टूर्नामेंटों का विश्लेषण करते हैं। उनके विश्लेषणात्मक समीक्षाओं की प्रशंसा प्रशंसकों और पेशेवर खिलाड़ियों द्वारा की जाती है।