सिंगापुर ग्रांड प्रिक्स: जब रेस सिर्फ रफ्तार की नहीं, गर्मी से जंग की भी हो!

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सिंगापुर का मरीना बे स्ट्रीट सर्किट, अपनी जगमगाती रात की रेस, तेज रफ्तार और अविश्वसनीय मोड़ के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यह फॉर्मूला 1 कैलेंडर पर सबसे ग्लैमरस और शारीरिक रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण रेसों में से एक है। लेकिन इस बार, इस ग्लैमरस रेस ट्रैक पर ड्राइवरों की जंग सिर्फ घड़ी और प्रतिद्वंदियों से नहीं, बल्कि एक अनदेखे, मगर कहीं ज्यादा क्रूर दुश्मन से भी है – भीषण गर्मी और दमघोंटू आर्द्रता।

गर्मी का खतरा: एक नई चुनौती

FIA (Federation Internationale de l`Automobile) ने इस सप्ताहांत होने वाले सिंगापुर ग्रांड प्रिक्स के लिए `हीट हैज़र्ड` (गर्मी के खतरे) की घोषणा की है। यह पहली बार है जब F1 रेस निदेशक रुई मार्केस ने इस नियम का प्रयोग किया है। इस घोषणा के पीछे का कारण स्पष्ट है: दौड़ के दौरान तापमान 31°C तक पहुंचने और आर्द्रता 75% से अधिक रहने का अनुमान है। ऐसे में, ड्राइवरों के लिए कार के अंदर का वातावरण किसी जलते हुए सौना से कम नहीं होता, जहां तापमान 60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है।

F1 ड्राइवर कूलिंग वेस्ट पहने हुए
लैंडो नॉरिस स्पेनिश ग्रांड प्रिक्स में कूलिंग वेस्ट पहने हुए। ऐसे वेस्ट अब सिंगापुर में भी ड्राइवरों की मदद करेंगे।

कतर ग्रांड प्रिक्स: एक सबक

यह `हीट हैज़र्ड` नियम 2023 के कतर ग्रांड प्रिक्स की प्रतिक्रिया में लाया गया था, जो अत्यधिक गर्मी और आर्द्रता में हुआ था। उस रेस के दौरान, विलियम्स के ड्राइवर लोगान सार्जेंट को रेस से हटना पड़ा था, जबकि लांस स्ट्रोल रेस के बाद अपनी कार के पास ही लगभग बेहोश हो गए थे। सिंगापुर में, एक ड्राइवर दो घंटे की रेस के दौरान शरीर से 3 किलोग्राम तक तरल पदार्थ यानी लगभग 3 लीटर पसीना खो सकता है। यह शरीर के कुल वजन का 4% से 5% तक हो सकता है, जो प्रदर्शन पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालता है और स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है।

कूलिंग वेस्ट: कैसे काम करते हैं?

इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए, ड्राइवरों के पास अब कूलिंग वेस्ट पहनने का विकल्प है। यह प्रणाली एक कूलेंट को वेस्ट में सिलाई गई पतली नलियों के माध्यम से पंप करके काम करती है, जो ड्राइवर के शरीर को ठंडा रखने में मदद करती है। इस वेस्ट और उसके हार्डवेयर को समायोजित करने के लिए कार का न्यूनतम वजन पांच किलोग्राम बढ़ा दिया गया है। यदि कोई ड्राइवर वेस्ट नहीं पहनना चाहता, तो भी उसे वजन का फायदा न मिल सके, इसके लिए कार में अतिरिक्त बैलास्ट (वजन) जोड़ना होगा।

परेशानियां और ड्राइवरों की राय: तकनीक की अपनी चुनौतियां

हालांकि, यह तकनीक जितनी सुनने में प्रभावी लगती है, उतनी ही व्यवहार में जटिल भी है। ड्राइवरों ने वेस्ट के कनेक्टिंग वाल्व और मोटी सामग्री को G-फोर्स के कारण असुविधाजनक बताया है। कुछ वेस्ट की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं, क्योंकि अगर सिस्टम फेल हो जाए, तो यह कूलिंग के बजाय गर्मी को रोकने वाला इंसुलेटर बन सकता है। जरा सोचिए, अत्याधुनिक तकनीक से लैस इन मशीनों को चलाने वाले ड्राइवरों को कभी-कभी सिर्फ एक आरामदायक वेस्ट के लिए जूझना पड़ता है!

विलियम्स के ड्राइवर कार्लोस सैन्ज़ कहते हैं, “शुरुआत में, ये वेस्ट केवल आधे घंटे तक ही प्रभावी थे। उम्मीद है कि अब पूरा सिस्टम कम से कम एक घंटे तक काम कर पाएगा।” वे आगे कहते हैं, “यह दो घंटे की रेस है। मैंने इसे सिंगापुर में 10 बार किया है। अगर यह टूट जाता है या काम नहीं करता है, तो मुझे चिंता नहीं। मैं रेस करूंगा और हमेशा की तरह `ताज़ा` ही बाहर निकलूंगा। लेकिन अगर यह काम करता है, तो यह बेहतर है, क्योंकि तब आपको थोड़ा कम कष्ट होता है।” उनका यह कथन इस स्थिति की जटिलता और ड्राइवरों की मानसिक दृढ़ता को दर्शाता है।

ड्राइवरों के अनुभव:

  • जॉर्ज रसेल: वे कूलिंग वेस्ट का स्वागत करते हैं और इसे “कार के अंदर एक चलता-फिरता सौना” बताते हैं। उनके अनुसार, यह अवधारणा अच्छी है, और समय के साथ इसे व्यक्तिगत पसंद के अनुसार समायोजित किया जा सकेगा।
  • लुईस हैमिल्टन: सात बार के चैंपियन लुईस हैमिल्टन ने इसे “बेहद असहज” और “खुजली वाला” बताया है, और अभी तक इसका उपयोग करने को लेकर संशय में हैं।
  • निको हल्कनबर्ग: उनका अनुभव तो और भी दिलचस्प है। जेद्दाह के बाद, जब वे एलेक्स एल्बोन के साथ वापस लौट रहे थे, तो एल्बोन, जिन्होंने वेस्ट पहना था, “वसंत के मुर्गे” की तरह ताज़ा थे, जबकि हल्कनबर्ग “टोस्ट” हो चुके थे। यहीं से उन्हें यह पहनने की प्रेरणा मिली।

निष्कर्ष: सुरक्षा और प्रदर्शन का संतुलन

सिंगापुर ग्रांड प्रिक्स में `हीट हैज़र्ड` की घोषणा और कूलिंग वेस्ट का उपयोग F1 में ड्राइवर सुरक्षा और प्रदर्शन के बीच निरंतर संतुलन साधने के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह सिर्फ कूलिंग वेस्ट की कहानी नहीं, बल्कि खेल में मानवीय सीमाओं को आगे बढ़ाने और सुरक्षा को सर्वोपरि रखने की कहानी है। यह याद दिलाता है कि भले ही तकनीक कितनी भी आगे बढ़ जाए, F1 में असली हीरो हमेशा ड्राइवर ही रहेगा, जो अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति से हर चुनौती का सामना करता है। इस सप्ताहांत, सिंगापुर में सिर्फ रफ्तार का नहीं, बल्कि इंसान की सहनशक्ति और नई तकनीक की परीक्षा का भी रोमांच देखने को मिलेगा।

धीरज मेहता

धीरज मेहता नई दिल्ली के एक खेल पत्रकार हैं जिन्हें बारह साल का अनुभव है। कबड्डी की स्थानीय प्रतियोगिताओं की कवरेज से शुरुआत करने वाले धीरज अब क्रिकेट, फुटबॉल और फील्ड हॉकी पर लिखते हैं। उनके लेख रणनीतिक विश्लेषण में गहराई से जाने के लिए जाने जाते हैं। वे एक साप्ताहिक खेल कॉलम लिखते हैं और लोकप्रिय खेल पोर्टल्स के साथ सक्रिय रूप से काम करते हैं।