मिलान, इटली। मिलान के प्रसिद्ध सैन सिरो (Meazza) स्टेडियम में आजकल एक अजीबोगरीब नजारा देखने को मिल रहा है। सीटें खचाखच भरी हैं, लेकिन वह जोशीला शोर, वह गूँज जो कभी `अल्ट्रास` (Ultras) नामक संगठित प्रशंसक समूहों की पहचान थी, अब कहीं गुम हो गई है। इंटर मिलान और एसी मिलान, जो कभी अपने प्रशंसकों के अटूट समर्थन के लिए जाने जाते थे, अब खुद को एक ऐसे अजूबे के सामने पा रहे हैं जहाँ स्टेडियम भरा तो है, पर `गूँगा` है। यह सिर्फ मिलान की बात नहीं, बल्कि यूरोपीय फुटबॉल में प्रशंसक संस्कृति के एक बड़े बदलाव का संकेत है।
मिलान का विरोधाभास: जब `बारहवाँ खिलाड़ी` मैदान से बाहर हो
हाल ही में, मिलान के एक प्रशंसक ने सैन सिरो से बाहर निकलते हुए व्यंग्यात्मक टिप्पणी की, “बारी के घर में 2-0 से सीज़न की शुरुआत करना बुरा नहीं…” यह टिप्पणी मौजूदा अजीब स्थिति को बखूबी बयां करती है। मिलान के अल्ट्रास समूहों के प्रमुखों को सजा मिलने और सैकड़ों उत्साही प्रशंसकों के सीज़न टिकटों के नवीनीकरण को अधिकारियों द्वारा अस्वीकार करने के बाद, इंटर और एसी मिलान ने इस सीज़न की शुरुआत अपने सबसे जोशीले समर्थकों के बिना की है। वे समर्थक जो वास्तव में पूरे स्टेडियम को अपनी ऊर्जा से सराबोर कर देते थे। अब स्टेडियम तो भरा रहता है, पर भीड़ `निष्क्रिय` है।
यह कुछ ऐसा है जैसे आपने एक आलीशान पार्टी का आयोजन किया हो, जहाँ हर कोई मौजूद है, पर किसी को बात करने या नाचने की इजाजत नहीं है। मिलान का यह स्टेडियम अब `ड्राइंग रूम` जैसा लगने लगा है, जहाँ आप आराम से बैठ कर मैच देख सकते हैं, शायद बीच-बीच में अपनी चाय की चुस्की भी ले सकते हैं, बिना किसी `अवांछित` शोर-शराबे के।
जब टीम को सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तो यह `बारहवाँ खिलाड़ी` अनुपस्थित होता है। इंटर को टोरिनो के खिलाफ अपने पहले मैच में पता चला कि `कर्वा नॉर्ड` (Curva Nord) ने `अनिश्चित काल तक सैन सिरो से बाहर रहने` का फैसला किया है। हालाँकि उस मैच में बाकी स्टेडियम ने कुछ हद तक उत्साह दिखाया, लेकिन उदोनसे के खिलाफ हार ने स्पष्ट कर दिया कि इस `हृदय` के बिना प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है। सवाल यह है कि क्या यह नई, शांत संस्कृति इतालवी फुटबॉल में जड़ें जमा पाएगी, जहाँ कोरियोग्राफी, जयकार और मशालें मैच का एक अभिन्न अंग रही हैं, जिसने हॉलीवुड हस्तियों जैसे स्पाइक ली और कान्ये वेस्ट को भी मंत्रमुग्ध किया है?
`तीसरा रास्ता` – जुनून और सुरक्षा के बीच संतुलन
मिलान अब एक सांस्कृतिक चुनौती का सामना कर रहा है: चरमपंथी और आपराधिक प्रशंसक संस्कृति और एक पूरी तरह से शांत, निष्क्रिय स्टेडियम के बीच एक `तीसरा रास्ता` खोजना। स्टेडियम में अभी भी हजारों लोग मौजूद हैं जो जयकार कर सकते हैं, पर आदतों को बदलना इतना आसान नहीं। सवाल यह है कि क्या फुटबॉल बिना उस संगठित जुनून के अपनी आत्मा बचा पाएगा, जो कभी-कभी नियंत्रण से बाहर हो जाता है? क्या हमें `किराये के जयकार करने वाले` चाहिए, जैसे स्पेन में होता है, या इंग्लैंड का `पॉश, सुरक्षित, लेकिन शांत` मॉडल?
यूरोप के विविध मॉडल: एक वैश्विक तुलना
यूरोपीय फुटबॉल लीगों ने हिंसक प्रशंसक संस्कृति से निपटने के लिए अलग-अलग रास्ते अपनाए हैं, जिनके परिणाम भी अलग रहे हैं:
स्पेन: `लाउंज` स्टेडियम और किराए के जयकार करने वाले
रियल मैड्रिड और बार्सिलोना ने लंबे समय से अल्ट्रास को हटा दिया है। उन्होंने `ग्राडा डी एनिमेशन` (Grada de Animacion) नामक 300-400 लोगों के समूह नियुक्त किए हैं जो जयकार का नेतृत्व करते हैं। स्टेडियम भरे रहते हैं, लेकिन माहौल एक `लाउंज` जैसा होता है। टिकटों की बढ़ती कीमतों ने सामान्य प्रशंसकों के लिए इसे और मुश्किल बना दिया है, जबकि विदेशी दर्शकों की संख्या बढ़ रही है। क्या यह फुटबॉल की आत्मा को बेचने जैसा है, जहाँ जुनून खरीदा जाता है?
इंग्लैंड: हुड़दंगियों का अंत और आधुनिक अनुभव
प्रीमियर लीग ने कैमरों और सख्त सजा के साथ हुड़दंगियों (hooligans) की समस्या को जड़ से खत्म कर दिया है। स्टेडियम भरे रहते हैं, कोई बैनर या धुआँ नहीं होता, लेकिन लोगों के जुनून के कारण उत्साह बना रहता है। कोई संगठित समूह जयकार का नेतृत्व नहीं करता। आधुनिक स्टेडियम, जैसे टोटेनहम हॉटस्पर स्टेडियम, एक नया अनुभव प्रदान करते हैं – वे हफ्ते के सातों दिन सक्रिय रहते हैं और मैच के दौरान `ओल्ड स्टाइल` प्रशंसकों और `सिनेमा` जैसी अनुभव चाहने वालों की जरूरतों को पूरा करते हैं। यह बहु-कार्यात्मक हैं; एक कॉन्सर्ट के लिए बस एक बटन दबाना होता है। क्या यह एक संतुलन है जहाँ सुरक्षा, आधुनिकीकरण और जुनून साथ-साथ चल सकते हैं?
फ्रांस: नियंत्रण और वापसी का एक जटिल इतिहास
पेरिस सेंट-जर्मेन (PSG) का अनुभव अद्वितीय है। 2010 में कुछ मौतों के बाद, अल्ट्रास संगठनों को भंग कर दिया गया था। बाद में, कतर के स्वामित्व में, 2016 में `कलेक्टिफ अल्ट्रास पेरिस` (Collectif Ultras Paris – CUP) के आधिकारिक पुनरागमन के साथ संगठित प्रशंसक संस्कृति को धीरे-धीरे बहाल किया गया। PSG अब यूरोप के सबसे लाभदायक स्टेडियमों में से एक है, जहाँ वाणिज्यिक नीतियों और VIP अनुभवों के कारण भारी राजस्व आता है। देश के बाकी हिस्सों में, अल्ट्रास समूहों पर कड़ी नजर रखी जाती है और अधिकारियों को प्रशंसकों के यात्रा प्रतिबंध लगाने का पूरा अधिकार है। यह एक ऐसा मॉडल है जहाँ नियंत्रण और व्यापारिक दृष्टिकोण जुनून को दिशा देते हैं।
जर्मनी: `अल्ट्रास` का सम्मान, `हुड़दंगियों` का बहिष्कार
जर्मनी में, अल्ट्रास और हुड़दंगियों के बीच स्पष्ट अंतर किया जाता है। अल्ट्रास को मान्यता प्राप्त है और उनका सम्मान किया जाता है; कई तो क्लब के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का भी हिस्सा होते हैं। वे क्लब प्रबंधन को प्रशंसकों की समस्याओं से अवगत कराते हैं और उनकी बात सुनी जाती है। वे पारंपरिक फुटबॉल के समर्थक हैं और सोमवार रात के मैचों जैसे आधुनिक परिवर्तनों का शांतिपूर्वक विरोध करते हैं। हुड़दंगी, हालांकि, स्टेडियमों में अपनी जगह नहीं पाते और क्लबों से उनका कोई संपर्क नहीं होता। जर्मन स्टेडियमों में कैमरे लगे हैं, और अक्सर खुद प्रशंसक ही उन लोगों की रिपोर्ट करते हैं जो गलत व्यवहार करते हैं। बायर्न म्यूनिख और बोरुसिया डॉर्टमुंड जैसे बड़े क्लबों के अल्ट्रास समूह भी अक्सर भेदभाव या किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ सक्रिय रहते हैं। जर्मनी का मॉडल शायद जुनून, परंपरा और जिम्मेदारी के बीच सबसे अच्छा संतुलन प्रस्तुत करता है।
निष्कर्ष: फुटबॉल की आत्मा को बचाने की लड़ाई
मिलान का सन्नाटा हमें एक गहरे सवाल की ओर धकेलता है: क्या हम एक ऐसे फुटबॉल के भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ स्टेडियम सिर्फ एक दर्शक दीर्घा होंगे, न कि जोश और जुनून का केंद्र? क्या फुटबॉल के `बारहवें खिलाड़ी` की अनुपस्थिति में खेल अपनी कुछ मौलिक अपील खो देगा?
शायद जल्द ही, हमें एक गोल के बाद भीड़ के पहले से रिकॉर्ड किए गए शोर को सुनने की आदत डालनी होगी, ताकि किसी भी `अप्रत्याशित` स्वतःस्फूर्तता से बचा जा सके।
यह फुटबॉल की आत्मा को बचाने की लड़ाई है, जहाँ वाणिज्यीकरण, सुरक्षा और प्रामाणिक प्रशंसक अनुभव के बीच संतुलन खोजना एक चुनौती है। भारतीय फुटबॉल के लिए भी, यह यूरोपीय मॉडल महत्वपूर्ण सबक प्रदान करते हैं – कैसे एक जोशीले, जिम्मेदार और सुरक्षित प्रशंसक आधार का निर्माण किया जाए, जो खेल को उसका सही सम्मान दे सके।