खेल जगत में कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं जिनकी उपस्थिति भले ही सुर्खियों में कम रहती हो, लेकिन उनका प्रभाव युगों तक महसूस किया जाता है। पाउलो रोबर्टो मोरीरा दा कोस्टा, जिन्हें प्यार से `पाउलाओ` कहा जाता था, उन्हीं में से एक थे। 56 वर्ष की आयु में उनका निधन वॉलीबॉल समुदाय के लिए एक गहरा आघात है, विशेषकर चिली के लिए, जहाँ उन्होंने बीच वॉलीबॉल को एक नई पहचान दी और एक अभूतपूर्व क्रांति का सूत्रपात किया।
एक खिलाड़ी से वैश्विक कोच तक का सफर
एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी के रूप में ब्राज़ील की धरती से खेल का ककहरा सीखने के बाद, पाउलाओ ने अपनी कोचिंग यात्रा को कई देशों की सीमाओं से परे ले जाया। उनकी विशेषज्ञता और बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण था कि वे विभिन्न खेल संस्कृतियों में समान रूप से सफल रहे। इटली के सामरिक मैदानों से लेकर इज़राइल की ऊर्जावान अदालतों तक, और फिर चीन की अनुशासित खेल व्यवस्था तक, उन्होंने हर जगह अपनी कोचिंग का लोहा मनवाया। यह उनका अनुभव ही था जिसने उन्हें खिलाड़ियों और टीमों की ज़रूरतों को गहराई से समझने और उन्हें शिखर तक पहुँचाने में मदद की। उनका सफर सिर्फ जीत और हार का नहीं था, बल्कि सीखने, सिखाने और वॉलीबॉल को एक वैश्विक भाषा बनाने का था।
चिली में एक अविस्मरणीय अध्याय: बीच वॉलीबॉल का पुनर्जन्म
उनकी कहानी का सबसे चमकदार अध्याय 2018 में शुरू हुआ, जब वे दक्षिण अमेरिकी राष्ट्र चिली पहुंचे। यह सिर्फ एक भौगोलिक बदलाव नहीं था; यह एक राष्ट्र के बीच वॉलीबॉल कार्यक्रम के लिए एक नया सवेरा था। पाउलाओ ने चिली के राष्ट्रीय बीच वॉलीबॉल कार्यक्रम की बागडोर संभाली और बहुत कम समय में उन्होंने वह कर दिखाया जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने मार्को और एस्टेबन ग्रिमाल्ट जैसे खिलाड़ियों को न केवल निखारा, बल्कि उन्हें टोक्यो 2020 और पेरिस 2024 ओलंपिक खेलों में लगातार दो बार उपस्थिति दर्ज कराने में मार्गदर्शन किया। यह चिली के इतिहास में एक अभूतपूर्व उपलब्धि थी, जिसने देश को वैश्विक वॉलीबॉल मानचित्र पर मजबूती से स्थापित किया।
ग्रिमाल्ट बंधुओं के साथ उनकी जोड़ी ने कई दक्षिण अमेरिकी और पैन अमेरिकी खिताब भी अपने नाम किए, जो चिली के बीच वॉलीबॉल इतिहास के सबसे बेहतरीन परिणाम थे। ये केवल ट्रॉफियां नहीं थीं; यह एक छोटे से देश के खिलाड़ियों में आत्मविश्वास का संचार था, उन्हें यह विश्वास दिलाना था कि वे विश्व मंच पर किसी से कम नहीं हैं। पाउलाओ ने चिली के वॉलीबॉल को एक नया आयाम दिया, जिससे कई युवा खिलाड़ी प्रेरित हुए।
जुनून, समर्पण और सहज सौहार्द की पहचान
पाउलाओ सिर्फ एक तकनीकी कोच नहीं थे; वे एक मार्गदर्शक, एक संरक्षक और एक प्रेरणा थे। उनके प्रभावशाली परिणामों ने तो सम्मान अर्जित किया ही, लेकिन उनकी असली पहचान उनके अद्वितीय जुनून, उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके सहज सौहार्द से बनी। उनके साथ काम करने वाले खिलाड़ी और सहयोगी हमेशा उनकी गर्मजोशी और खिलाड़ियों के प्रति उनके व्यक्तिगत जुड़ाव को याद करते हैं। वे जानते थे कि खेल सिर्फ रणनीति और कौशल का नाम नहीं है, बल्कि यह भावनाओं, दृढ़ संकल्प और मानवीय संबंधों का भी संगम है। शायद यही वजह थी कि वे इतनी जल्दी खिलाड़ियों के दिल में जगह बना लेते थे और उनसे उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन निकलवा पाते थे। चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने हमेशा एक स्थिर और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखा, जो उनके आसपास के सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत था।
एक अमर विरासत और अदम्य प्रेरणा
FIVB सहित पूरा वॉलीबॉल समुदाय, पाउलाओ के परिवार और प्रियजनों, चिली वॉलीबॉल महासंघ, ब्राज़ीलियाई वॉलीबॉल परिसंघ और दक्षिण अमेरिकी वॉलीबॉल समुदाय के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता है। पाउलाओ का जाना खेल जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। लेकिन, उनकी विरासत अमर रहेगी। उन्होंने न केवल खिलाड़ियों को जीतना सिखाया, बल्कि उन्हें सपनों का पीछा करना भी सिखाया, उन्हें यह विश्वास दिलाया कि सीमित संसाधनों के बावजूद भी बड़ी ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है। उन्होंने जो बीज बोए हैं, वे आने वाले वर्षों में चिली और विश्व वॉलीबॉल में फलते-फूलते रहेंगे। शायद, अब स्वर्ग में भी बीच वॉलीबॉल की टीमें बेहतर रणनीति बनाना सीख रही होंगी, क्योंकि पाउलाओ अपनी नई `कोचिंग पिच` पर पहुँच चुके हैं। उनकी यादें और उनका काम हमेशा प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे, जो हमें यह सिखाते रहेंगे कि समर्पण और जुनून से कुछ भी संभव है।