अल्जीरियाई मुक्केबाज इमान खलीफ ने पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया है, लेकिन उनकी यह जीत केवल रिंग के भीतर की लड़ाई का परिणाम नहीं है। यह उन तमाम पूर्वाग्रहों और लैंगिक पहचान पर उठने वाले सवालों के खिलाफ एक ज़ोरदार मुक्का है, जिन्होंने उनके करियर को बार-बार चुनौती दी। खलीफ की कहानी दृढ़ संकल्प, न्याय और खेल में महिलाओं के लिए समान अवसर की लड़ाई की एक प्रेरक गाथा है।
एक मुक्केबाज का जन्म: संघर्ष और जुनून की शुरुआत
इमान खलीफ ने अपनी रक्षा करना बहुत जल्दी सीख लिया था। मात्र पंद्रह वर्ष की उम्र में, जब पहली बार उन्होंने मुक्केबाजी के दस्ताने पहने, तभी उन्हें इस खेल से प्रेम हो गया। यह प्रेम ही उनका सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत बना और उन्हें अनगिनत विवादों, हमलों और लिंग पहचान पर उठे सवालों से लड़ने की ताकत दी। अल्जीरिया के एक छोटे से शहर से आने वाली खलीफ के लिए मुक्केबाजी चुनना असामान्य था। उनके पिता भी शुरू में इसके खिलाफ थे, लेकिन उनकी मां ने हमेशा उनका साथ दिया।
खलीफ के लिए रास्ता आसान नहीं था। प्रतिदिन प्रशिक्षण के लिए उन्हें दस किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था और इस खर्च को उठाने के लिए वह सड़कों पर रोटी, एल्युमीनियम और लोहा बेचा करती थीं। मानसिक रूप से भी यह एक कठिन दौर था, क्योंकि उच्च स्तर पर खेल खेलने के लिए समर्पण और बड़े बलिदान की आवश्यकता होती है। जब भी हार मानने का विचार उनके मन में आता, उन्हें लगता कि यही वह समय है जब उन्हें और भी ज़ोरदार मुक्का मारना होगा।
पेरिस ओलंपिक: स्वर्ण पदक और विवादों का अखाड़ा
पेरिस ओलंपिक 2024 में स्वर्ण पदक जीतने का पल इमान खलीफ के लिए अविस्मरणीय है। यह एक एथलीट के लिए एक विशाल उपलब्धि है, खासकर जब आप उन सभी बलिदानों और कड़ी मेहनत को जानते हैं जो इस सपने को साकार करने के लिए किए गए थे। हालांकि, उनकी जीत के साथ ही लिंग पहचान को लेकर पुराना विवाद भी एक बार फिर चर्चा में आ गया। उन पर ऊंचे टेस्टोस्टेरोन स्तर के कारण लिंग अयोग्यता के आरोप लगाए गए और इसी कारण उन्हें कुछ अन्य प्रतियोगिताओं जैसे आइंडहोवन बॉक्स कप और सर्बिया में विश्व चैंपियनशिप से बाहर कर दिया गया था।
मीडिया में इस मामले को लेकर काफी हंगामा हुआ, लेकिन खलीफ ने खुद को इससे अप्रभावित रहने दिया। वह जानती थीं कि कई एथलीटों को अतीत में और आज भी ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा, “ओलंपिक में मेरा अनुभव दर्शाता है कि कोई भी एथलीट इसका शिकार हो सकता है। जो हुआ वह बहुत हानिकारक था, लेकिन मैं अपने लक्ष्य पर केंद्रित रही।”
लिंग परीक्षणों की उलझन और न्याय की मांग
अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (IBA) ने “बहुत अधिक टेस्टोस्टेरोन स्तर” के कारण खलीफ को कुछ आयोजनों से बाहर कर दिया, जबकि अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने उन्हें पेरिस में भाग लेने की अनुमति दी। यह विसंगति लिंग पहचान परीक्षणों की जटिलता और स्पष्टता की कमी को उजागर करती है। यह सवाल उठाती है कि खेल संस्थाएं लिंग मानदंड कैसे निर्धारित करती हैं और क्या ये मानदंड निष्पक्ष और वैज्ञानिक रूप से सुदृढ़ हैं?
“एक एथलीट के रूप में, मैं अपना पूरा जीवन प्रशिक्षण और तैयारी में लगा देती हूं, और मैं नियमों का पालन करती हूं जैसा वे लिखे गए हैं। लेकिन जब बाहरी दबाव सब कुछ अस्पष्ट बना देते हैं, तो अचानक और अनुचित निर्णयों का शिकार होना आसान हो जाता है। यह न केवल एथलीट को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि खेल की भावना को भी, जो पारदर्शिता और आपसी सम्मान पर आधारित होनी चाहिए।”
इमान खलीफ का कहना है कि यह अस्पष्टता उनके करियर को प्रभावित करती है। उनका मामला इस बात पर प्रकाश डालता है कि लिंग पहचान के आसपास के वैज्ञानिक और नैतिक विचार कितने जटिल हैं। जब खेल निकाय अलग-अलग निर्णय लेते हैं, तो यह एथलीटों के लिए अनिश्चितता पैदा करता है और खेल की अखंडता पर सवाल उठाता है। क्या नियमों का पालन करना तभी तक महत्वपूर्ण है जब तक कोई “असुविधाजनक” एथलीट परिणाम न दे? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर खेल प्रशासकों को ईमानदारी से देना होगा।
महिलाओं के लिए लड़ाई और भविष्य की आशा
खलीफ मुक्केबाजी छोड़ने का कोई इरादा नहीं रखती हैं। पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक की जीत ने उन्हें और भी ऊर्जा दी है। उन्होंने कहा, “मैं एक और पदक चाहती हूं और खेलों में महिलाओं के लिए अधिक अवसर पैदा करने में योगदान देना चाहती हूं।” उनका दृढ़ संकल्प उन सभी महिलाओं के लिए एक मिसाल है जो खेल जगत में भेदभाव और पूर्वाग्रह का सामना करती हैं।
उनका मानना है कि उनके मामले ने खेल को बदल दिया है। “मुझे लगता है कि इसने उन चुनौतियों पर प्रकाश डाला है जिनका महिलाएं खेल में सामना करती हैं और कभी-कभी भेदभाव के कारण उन्हें जिन अन्याय का सामना करना पड़ता है। मेरे अनुभव ने दिखाया है कि सच्चाई पर टिके रहना अंततः सफलता दिला सकता है, और जो महिलाएं को नुकसान पहुंचाते हैं, वे कभी उनकी दृढ़ता को तोड़ नहीं पाएंगे।”
संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है, लेकिन खलीफ भविष्य के लिए आशावादी हैं। उन्हें उम्मीद है कि अगले ओलंपिक अलग होंगे, क्योंकि पिछले खेलों के दौरान शुरू हुई चर्चा लोगों को अधिक जागरूक और वास्तविकता को समझने के लिए अधिक खुला बनाएगी, जिससे एक अधिक न्यायसंगत और निष्पक्ष खेल वातावरण बनेगा। इमान खलीफ केवल एक मुक्केबाज नहीं हैं; वह एक आंदोलन हैं, जो रिंग के बाहर भी न्याय और समानता के लिए लड़ रही हैं।