फुटबॉल के वित्तीय जाल में उलझा नापोली: ‘प्लसवालेनज़े’ विवाद और जुवेंटस से इसकी अनोखी तुलना

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इतालवी फुटबॉल, सिर्फ मैदान पर ही नहीं, बल्कि वित्तीय मामलों में भी अक्सर रोमांचक नाटक पेश करता है। इस बार सुर्खियों में है चैम्पियन नापोली और उसके अध्यक्ष, जिन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे हैं। लेकिन क्या यह मामला वैसा ही है जैसा कुछ समय पहले जुवेंटस के साथ हुआ था? आइए इस जटिल वित्तीय पहेली को सुलझाते हैं।

पूंजीगत लाभ का पेचीदा खेल: नापोली के अध्यक्ष पर आरोप

रोम अभियोजक के कार्यालय द्वारा नापोली के अध्यक्ष ऑरेलियो डी लॉरेन्टिस के खिलाफ `फर्जी बहीखाता` के आरोप एक बार फिर इतालवी फुटबॉल में `प्लसवालेनज़े` (Plusvalenze – पूंजीगत लाभ) के मुद्दे को गरमा रहे हैं। विशेष रूप से, मनोलस और ओसिम्हेन के हस्तांतरण, जिनकी लेखा-जोखा विधि पर सवाल उठाए गए हैं। आरोप है कि 2019 से 2021 के बीच नापोली के पूंजीगत लाभ को बढ़ाने के लिए इन हस्तांतरणों का उपयोग किया गया हो सकता है।

हाल ही में, वित्तीय पुलिस (Guardia di Finanza) द्वारा एकत्र किए गए दस्तावेजों के कुछ हिस्से प्रकाशित हुए हैं, जिनसे ओसिम्हेन के लिल (Lille) के साथ हुए सौदे की स्थिति कम से कम `अस्पष्ट` तो दिखती ही है। इन दस्तावेजों में कुछ दिलचस्प संचार शामिल हैं:

  • तत्कालीन उप-खेल निदेशक, ज्यूसेपे पोम्पिलियो का डी.एस. क्रिस्टियानो जियंटोली को एक एसएमएस: “तुम्हें कुछ भी लिखने की जरूरत नहीं है। ईमेल में कोई निशान मत छोड़ो। मौखिक रूप से तुम जो चाहो कहो।”
  • लिल के अध्यक्ष लोपेज़ का एक ईमेल, जिसमें एक खिलाड़ी के “नाममात्र मूल्य” (nominal value) का जिक्र है ताकि “कम कीमत चुकाई जा सके।”
  • जियंटोली और नापोली के ए.डी. एंड्रिया चियावेली के बीच एक बातचीत, जिसमें यह रेखांकित किया गया है कि उनास का “वास्तविक बाजार मूल्य लीएंड्रिन्हो और लोरेंटे से अधिक है…”

ये सभी संचार वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता की कमी का संकेत देते हैं, जो फुटबॉल की दुनिया में कभी-कभी `सामान्य` माने जा सकते हैं, लेकिन कानूनी जांच के दायरे में आने पर उनकी गंभीरता बढ़ जाती है।

जुवेंटस का “प्रिज्मा” मामला: एक तीखी तुलना

इन आरोपों को देखकर कई लोगों के मन में जुवेंटस के कुख्यात “प्रिज्मा” मामले की याद ताजा हो जाती है, जिसमें `प्लसवालेनज़े` के कारण क्लब को भारी दंड भुगतना पड़ा था। जुवेंटस पर भी इसी तरह के आरोप थे, लेकिन उस मामले में खेल न्याय प्रणाली को `निर्णायक` सबूत मिले थे, जिसने पहले की बरी को पलट दिया था।

तो, नापोली का मामला जुवेंटस से कैसे अलग है? संघीय अभियोजक के अनुसार, मुख्य अंतर सबूतों की प्रकृति में है।

जुवेंटस के “प्रिज्मा” मामले में, अधिकारियों को ऐसे “कबूलनामे वाले” (confessory) सबूत मिले थे, जैसे कि वायरटैप और “कार्टा पारatici” (Paratici`s Letter) जैसे दस्तावेज। इन दस्तावेजों में खिलाड़ियों के मूल्य स्पष्ट रूप से “संशोधित, हेरफेर किए गए, हटाए गए” दिखाए गए थे, और कुछ मामलों में तो खिलाड़ियों के नामों के बजाय केवल `X` का उपयोग किया गया था। ये ऐसे सबूत थे जो धोखाधड़ी के स्पष्ट इरादे को दर्शाते थे।

नापोली के मामले में सामने आए दस्तावेज – भले ही `अस्पष्ट` हों – उस स्तर के `कबूलनामे वाले` सबूत नहीं माने जाते हैं। कोई प्रत्यक्ष वायरटैप या “नाममात्र मूल्य” को जानबूझकर फुलाने के स्पष्ट, लिखित स्वीकारोक्ति नहीं मिली है जो जुवेंटस मामले में देखी गई थी।

खेल न्याय प्रणाली की जटिलताएं: मूल्य का सापेक्ष पहलू

खेल न्याय प्रणाली के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत को समझना यहां आवश्यक है: एक खिलाड़ी को दिया गया मूल्य स्वाभाविक रूप से सापेक्ष होता है। दूसरे शब्दों में, किसी खिलाड़ी का `सही` बाजार मूल्य तय करना अक्सर एक व्यक्तिपरक प्रक्रिया होती है, जिस पर कई कारक जैसे प्रदर्शन, क्षमता, उम्र, अनुबंध की स्थिति और क्लब की तात्कालिक जरूरतें प्रभाव डालती हैं।

इसी कारण से, खेल न्याय प्रणाली ने यह स्पष्ट किया है कि केवल मूल्यों के `फुलाए जाने` को दिखाने के लिए “बहीखाते में मूल्यों को फुलाने के इरादे” के निश्चित प्रमाण की आवश्यकता होती है। संघीय अभियोजक ग्यूसेपे चिन के अनुसार, डी लॉरेन्टिस के खिलाफ नापोली मामले में एकत्र किए गए सबूत इस तरह के निश्चित इरादे को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। वे “निर्णायक सबूत” नहीं हैं जो पिछले बरी के फैसलों को पलटने के लिए आवश्यक होते।

यह हमें एक पेचीदा स्थिति में लाता है: जबकि कुछ व्यवहार `अस्पष्ट` लग सकते हैं, और `ईमेल में निशान न छोड़ने` जैसे निर्देश संदेह पैदा करते हैं, कानूनी रूप से यह साबित करना कि ये कार्य जानबूझकर धोखाधड़ी के इरादे से किए गए थे, एक बहुत बड़ी चुनौती है।

निष्कर्ष: एक खेल, कई नियम

फिलहाल, ऐसा लगता है कि नापोली के लिए एक नए खेल न्यायिक मुकदमे की स्थिति नहीं बनेगी। इतालवी फुटबॉल एक बार फिर इस बात का गवाह है कि न्याय की परिभाषा, विशेष रूप से वित्तीय मामलों में, सबूतों की प्रकृति और उनकी व्याख्या पर कितनी निर्भर करती है। यह खेल की दुनिया में एक सतत अनुस्मारक है कि वित्तीय पारदर्शिता एक आदर्श है, लेकिन उसे कानूनी रूप से साबित करने के लिए `धूम्रपान करने वाली बंदूक` की आवश्यकता होती है, न कि केवल धुएं के निशान की।

यह लेख इतालवी फुटबॉल में चल रहे `प्लसवालेनज़े` विवादों का एक विश्लेषणात्मक अवलोकन प्रस्तुत करता है, विशेष रूप से नापोली और जुवेंटस के मामलों की तुलना करते हुए।

रोहित कपूर

रोहित कपूर बैंगलोर से हैं और पंद्रह साल के अनुभव के साथ खेल पत्रकारिता के दिग्गज हैं। टेनिस और बैडमिंटन में विशेषज्ञ हैं। उन्होंने खेल पर एक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल बनाया है, जहां वे महत्वपूर्ण मैचों और टूर्नामेंटों का विश्लेषण करते हैं। उनके विश्लेषणात्मक समीक्षाओं की प्रशंसा प्रशंसकों और पेशेवर खिलाड़ियों द्वारा की जाती है।