फ़ुटबॉल की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो केवल एक खिलाड़ी या कोच से बढ़कर एक युग का प्रतीक बन जाते हैं। इटली के महान कोच फ्रेंको स्कोलियो, जिन्हें प्यार से `प्रोफेसर` कहा जाता था, उनमें से एक थे। अपनी अद्वितीय शैली, बेबाक व्यक्तित्व और जेनोआ (Genoa) फ़ुटबॉल क्लब के प्रति असीम प्रेम के लिए वे आज भी याद किए जाते हैं। हाल ही में, उनकी 20वीं पुण्यतिथि पर, उनके बेटे तुबियास स्कोलियो ने अपने पिता की उन अनमोल यादों को ताज़ा किया, जो उनके जुनून और विरासत को बयां करती हैं।
`मैं कविता नहीं करता, मैं वर्टिकल करता हूँ`: प्रोफेसर के बेबाक बोल
फ्रेंको स्कोलियो केवल एक फ़ुटबॉल कोच नहीं थे, वे एक दार्शनिक थे, एक कलाकार थे, जिनकी अपनी शब्दावली थी। उनकी बातें अक्सर सुर्खियां बटोरती थीं और उनके व्यक्तित्व को दर्शाती थीं। कुछ मशहूर उद्धरण जो आज भी फ़ुटबॉल प्रेमियों की ज़ुबान पर हैं:
- “मैं कविता नहीं करता, मैं वर्टिकल करता हूँ।” (Io non faccio poesia, io verticalizzo) – यह उनके सीधे, आक्रामक और प्रभावी फ़ुटबॉल के दर्शन को दर्शाता था। जहाँ दूसरे टीम की रणनीति में कला ढूंढते थे, स्कोलियो सिर्फ़ जीत का रास्ता जानते थे।
- “तुम, पीछे वाले, बंद करो। नहीं तो मैं *ad minchiam* बात करूँगा।” (Lei, là in fondo, la deve smettere. Sennò parlo ad minchiam) – उनकी यह टिप्पणी उनके अनुशासन और बेफ़िक्री का अद्भुत मिश्रण थी। उनका मतलब था कि अगर आप ध्यान नहीं देंगे, तो मैं बेतुकी बातें भी कर सकता हूँ, या कह लीजिए, किसी भी तरह से अपनी बात मनवा सकता हूँ।
- “मुझे साम्पदोरिया (Sampdoria) से नफ़रत है और मैं इसे दोहराने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ता।” (Io odio la Sampdoria e non perdo occasione per ribadirlo) – जेनोआ के कट्टर प्रतिद्वंद्वी क्लब साम्पदोरिया के प्रति उनकी यह घोषणा जेनोआ के प्रशंसकों के लिए किसी मंत्र से कम नहीं थी। डर्बी के प्रति उनका जुनून इस एक वाक्य में सिमट जाता था।
- “जब मैं हारता हूँ तो कितना रोमांच होता है!” (Che libidine quando perdo) – यह सुनने में भले ही विरोधाभासी लगे, लेकिन यह उनके उस जज़्बे को दर्शाता था कि हार भी उन्हें सीखने और आगे बढ़ने का मौक़ा देती थी। शायद ही कोई दूसरा कोच ऐसी बात सार्वजनिक रूप से कहने की हिम्मत करता।
ये केवल वाक्य नहीं थे, ये फ्रेंको स्कोलियो का पूरा व्यक्तित्व थे। वे अपने किरदारों के साथ हमेशा सीधे और सुसंगत रहते थे, बिना किसी दिखावे के।
तुबियास की आँखों से: एक पिता का सच्चा जुनून
फ्रेंको स्कोलियो की मृत्यु 3 अक्टूबर 2005 को एक टीवी शो में जेनोआ के तत्कालीन अध्यक्ष एनरिको प्रेशियोसी के साथ बहस के दौरान दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। यह उनकी अपनी भविष्यवाणी की एक अजीबोगरीब पूर्ति थी: “मैं जेनोआ की बात करते हुए मरूँगा।” उनके बेटे तुबियास, जो उनके चार बच्चों में सबसे ज़्यादा फ़ुटबॉल प्रेमी थे, ने इस दर्दनाक घटना को कई बार देखा।
“बहुत बार, और शुरुआत में बहुत दुख होता था। पहले 2-3 सालों तक मुझे यह एक हॉरर फ़िल्म जैसा लगता था, फिर समय के साथ मैं इसे स्वीकार कर पाया। मेरे पिता ऐसे दिखते थे जैसे सो रहे हों। मैंने एक दोस्त से उन तस्वीरों को नेट से हटाने के लिए कहा, लेकिन उसने समझाया कि कोई न कोई उन्हें फिर से ऑनलाइन डाल देगा। यह एक बेकार की लड़ाई बन जाती।”
तुबियास ने बताया कि उनके पिता का जेनोआ के साथ हमेशा एक खास रिश्ता रहा। “मैं हमेशा सभी बच्चों में सबसे ज़्यादा फ़ुटबॉल प्रेमी रहा हूँ। पापा मुझे जेनोआ के साथ समझौता करने से पहले फ़ोन करते थे और कहते थे, `मज़बूत रहना, मैं तुम्हें एक सरप्राइज दे रहा हूँ…` और सबसे बड़ा सरप्राइज हमेशा ग्रिफ़ोन (जेनोआ का उपनाम) की बेंच होती थी।”
जेनोआ: उनका सच्चा प्रेम और असीम त्याग
स्कोलियो का जेनोआ के प्रति जुनून किसी भी चीज़ से ज़्यादा था। जब उनका जेनोआ के साथ रिश्ता ख़त्म होता था, तो वे बहुत ज़्यादा दुख में रहते थे।
“वे परेशान हो जाते थे, दुखी हो जाते थे, वे पूरी तरह से टूट जाते थे। क्योंकि वे एक कोच के रूप में पूरी लगन से काम करते थे, दूसरों से अलग: वे पैसे के लिए नहीं, बल्कि जुनून के लिए काम करते थे। यही कारण था कि 2001 में उन्होंने अपनी सैलरी का बड़ा हिस्सा क्लब को छोड़कर चले गए। जेनोआ के लिए। दूसरी टीमों के साथ, वे अपना पैसा उचित रूप से लेते थे।”
अप्रैल 2001 में एक डर्बी से पहले की रात की घटना याद करते हुए तुबियास बताते हैं, “मैं रात के 4 बजे पानी पीने के लिए उठा और मैंने पापा को बिस्तर पर लगभग बीस पन्नों और ब्लैकबोर्ड के साथ टीम की रणनीति बनाते हुए पाया। वे मुझे देखते भी नहीं थे, बस कहते थे `रुको, चुप रहो, मुझे नहीं पता कि जियाकेटा या मालागो को आगे रखना है या रुओटोलो को…`” इसी अदम्य जुनून के कारण तुबियास ने अपने बेटे का नाम फ्रांसेस्को स्कोलियो जूनियर रखा।
विश्व कप का त्याग और एक जीत का डर्बी
स्कोलियो के जुनून का सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिला जब उन्होंने ट्यूनीशियाई राष्ट्रीय टीम के कोच के रूप में विश्व कप में जाने का मौक़ा छोड़ दिया, सिर्फ़ इसलिए ताकि वे सीरी बी में जेनोआ को बचा सकें। ट्यूनीशिया पहले ही विश्व कप के लिए क्वालिफाई कर चुका था।
“वह जनवरी का महीना था, राष्ट्रीय टीम पहले ही क्वालिफाई कर चुकी थी और अच्छा फ़ुटबॉल भी खेल रही थी। ग्रिफ़ोन बहुत ख़राब कर रहा था, वह पेनल्टीमेट स्थान पर था। टीम ओनोफ़्री के साथ सालेर्नो गई, लेकिन टीम पापा ने दूर से बनाई। और कुछ दिनों बाद वे जेनोआ लौट आए। शहर का उनके ऊपर विश्व कप से भी ज़्यादा मज़बूत आकर्षण था। फिर, उनके दिमाग में, वे बड़ी फ़िल्में बनाते थे: उन्हें विश्वास था कि वे जेनोआ को बचाएँगे और फिर जापान और कोरिया (विश्व कप) के लिए रवाना होंगे, लेकिन ट्यूनीशियाई अधिकारियों को बुरा लगा और उन्होंने दोहरी भूमिका स्वीकार नहीं की। फिर भी, उन्होंने एक डर्बी जीतकर जेनोआ को शानदार तरीके से बचाया। अगर उन्होंने सीज़न की शुरुआत से काम किया होता, तो वे सीरी ए में पदोन्नत हो जाते।”
छूटे हुए अवसर और करियर का सबसे बड़ा अफ़सोस
अपने पूरे करियर में, फ्रेंको स्कोलियो को कई बड़े क्लबों ने चाहा, लेकिन उनकी नियति जेनोआ से जुड़ी रही। जुवेंटस और नापोली जैसे क्लबों ने उनसे संपर्क किया, लेकिन बात नहीं बन पाई।
“केवल जुवेंटस ही नहीं, बल्कि माराडोना की नापोली ने भी मेरे पिता को चाहा। सभी मेरे पिता को लुभा रहे थे। लेकिन फिर मोंटेज़ेमोलो ने बोनिपेर्टी की जगह ली और मैफ़रेडी को लेने का फ़ैसला किया। जबकि नापोली में, मोग्गी ने कुछ आकलन के बाद बिगॉन को रखने का विकल्प चुना। उस सीज़न में, स्पिनैली ने पापा को रहने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से उन्होंने मना कर दिया, और अगले साल जेनोआ बग्नोलि के साथ यूरोप गया। यह उनके करियर की सबसे बड़ी गलती थी: सार्वजनिक रूप से वे इसे कभी स्वीकार नहीं करते, लेकिन घर पर करते थे।”
यह दिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति की नियति और उसका दिल उसे किस ओर खींचता है, भले ही व्यावसायिक अवसर कुछ और ही इशारा कर रहे हों।
प्रोफेसर की विरासत आज भी जीवित
आज भी, तुबियास का मानना है कि फ्रेंको स्कोलियो जैसे कोच की जेनोआ को सख़्त ज़रूरत है। तुबियास अपने बेटे फ़्रांसिस्को के फ़ुटबॉल खिलाड़ी बनने के सपने को अपने पिता के दर्शन के साथ जोड़ते हैं। उनका पसंदीदा उद्धरण, “मैं कविता नहीं करता, मैं वर्टिकल करता हूँ,” उनके लिए आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
“मुझे यकीन है कि मेरे पिता विएरा (वर्तमान कोच) से बेहतर करेंगे, जैसे मेरे पिता थे: अपनी क्षमताओं के प्रति आश्वस्त व्यक्ति। यह सच है कि जेनोआ ने बिना बदले खिलाड़ियों को बेचा है और एक कोच के लिए मुश्किल हो जाता है, बल्कि मैं खुद भी सोचता था कि टीम कागज़ पर ज़्यादा मज़बूत थी। लेकिन स्कोलियो जेनोआ को आसानी से बचा लेते।”
फ्रेंको स्कोलियो की कहानी सिर्फ़ एक कोच की नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने अपने दिल की सुनी, अपने जुनून को हर चीज़ से ऊपर रखा और एक क्लब के साथ ऐसा रिश्ता बनाया जो मृत्यु के बाद भी अमर है। `प्रोफेसर` चले गए, लेकिन उनकी विरासत, उनके उद्धरण और जेनोआ के प्रति उनका अदम्य प्रेम फ़ुटबॉल के इतिहास में हमेशा चमकता रहेगा। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा जुनून और निष्ठा कभी मरती नहीं, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रेरणा देती रहती है।