फुटबॉल के मैदान पर खिलाड़ी और कोच का रिश्ता किसी भी टीम की सफलता का आधार होता है। लेकिन क्या हो जब खिलाड़ी की व्यक्तिगत आकांक्षाएँ कोच की रणनीतिक योजनाओं से टकराएँ? ऐसा ही एक दिलचस्प मामला इटली के दिग्गज क्लब इंटर मिलान में सामने आया है, जहाँ युवा विंगर फेडरिको डिमार्को ने अपने पूर्व कोच सिमोने इंजागी की सब्स्टीट्यूशन रणनीति पर खुलकर बात की है।
खिलाड़ी का दर्द: `अगर मैं 60 मिनट पर बाहर नहीं आता, तो मैं और बेहतर कर सकता था!`
चैंपियंस लीग में स्लाविया प्राग के खिलाफ आगामी मुकाबले से पहले, इंटर मिलान के फेडरिको डिमार्को ने एक बयान दिया, जिसने इटली के फुटबॉल जगत में हलचल मचा दी। उन्होंने सीधे तौर पर अपने पूर्व कोच सिमोने इंजागी के उस फैसले पर सवाल उठाया, जिसके तहत उन्हें अक्सर मैच के 60वें मिनट के आसपास सब्स्टीट्यूट कर दिया जाता था। डिमार्को का मानना है कि इस लगातार `जल्दी बाहर बुलाए जाने` की वजह से उनकी फिटनेस और मैच प्रदर्शन दोनों पर नकारात्मक असर पड़ा।
“मैंने हमेशा 100% ट्रेनिंग की है। अगर मुझे हर बार एक घंटे के बाद बाहर नहीं निकाला जाता, तो मैं 90 मिनट खेलकर अपनी कंडीशन को और बेहतर बना सकता था। मैं आत्मविश्वास फिर से पाने के लिए काम कर रहा हूँ। हमारा लक्ष्य लगातार चौथी जीत हासिल करना है। हमें हमेशा वर्तमान या भविष्य की ओर देखना चाहिए, अतीत की ओर कभी नहीं।”
डिमार्को के इन शब्दों में एक खिलाड़ी की स्वाभाविक इच्छा झलकती है – मैदान पर अपना पूरा समय देना, खेल की लय को महसूस करना और टीम के लिए हर संभव योगदान देना। किसी भी एथलीट के लिए, खासकर फुटबॉल जैसे ऊर्जा-खर्चीले खेल में, मैच टाइमिंग से फिटनेस का सीधा संबंध होता है। अगर कोई खिलाड़ी लगातार 90 मिनट खेलता है, तो उसकी शारीरिक सहनशक्ति (स्टैमिना) और मैच कंडीशनिंग बेहतर होती है। वहीं, अगर उसे हर बार 60 मिनट पर रोक दिया जाए, तो वह कभी भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुँच पाता, या कम से कम, ऐसा खिलाड़ी को लग सकता है।
कोच की रणनीति: क्यों खिलाड़ी 60 मिनट पर बाहर आते हैं?
अब सवाल उठता है कि कोच आखिर ऐसा क्यों करते हैं? क्या सिमोने इंजागी डिमार्को की प्रतिभा को पहचान नहीं पा रहे थे, या इसके पीछे कोई गहरी रणनीतिक वजह थी? फुटबॉल एक जटिल खेल है, जहाँ कोच हर सेकंड एक शतरंज के खिलाड़ी की तरह दांव चलता है। खिलाड़ी को 60 मिनट पर सब्स्टीट्यूट करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जो अक्सर बाहर से देखने वाले प्रशंसकों या खुद खिलाड़ी के लिए भी स्पष्ट नहीं होते:
- थकान प्रबंधन (Fatigue Management): विंगर या मिडफील्डर जैसे खिलाड़ियों को पूरे मैच में लगातार दौड़ना और हमला व बचाव दोनों में योगदान देना पड़ता है। 60-70 मिनट के बाद उनकी ऊर्जा में कमी आना स्वाभाविक है। ऐसे में, कोच एक फ्रेश खिलाड़ी को लाकर टीम की ऊर्जा और गति को बनाए रखना चाहता है।
- सामरिक परिवर्तन (Tactical Changes): मैच की स्थिति के अनुसार कोच अपनी रणनीति बदल सकता है। उदाहरण के लिए, अगर टीम आगे चल रही है, तो वह एक आक्रामक विंगर को हटाकर एक रक्षात्मक मिडफील्डर या फुल-बैक को ला सकता है ताकि लीड को बरकरार रखा जा सके।
- चोट से बचाव (Injury Prevention): कुछ खिलाड़ी चोट के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। कोच उन्हें मैच के अंतिम हिस्सों में अत्यधिक दबाव से बचाने के लिए बाहर बुला सकता है।
- स्क्वाड रोटेशन (Squad Rotation): बड़े क्लबों को अक्सर कई प्रतियोगिताओं में एक साथ खेलना होता है – लीग, कप और चैंपियंस लीग। ऐसे में, सभी खिलाड़ियों को पर्याप्त खेलने का मौका देना और प्रमुख खिलाड़ियों को अत्यधिक थकने से बचाना महत्वपूर्ण होता है।
इंजागी शायद डिमार्को को भविष्य के बड़े मैचों के लिए बचा रहे थे, या उन्हें लगा कि 60 मिनट के बाद उनकी प्रभावशीलता कम हो जाएगी। यह भी संभव है कि वह टीम को नई ऊर्जा देने के लिए बेंच पर बैठे किसी और खिलाड़ी पर भरोसा करना चाहते हों। कोच के लिए व्यक्तिगत खिलाड़ी की इच्छा से ऊपर टीम का हित होता है।
आधुनिक फुटबॉल में खिलाड़ी-कोच संबंध की जटिलता
डिमार्को का बयान आधुनिक फुटबॉल में खिलाड़ी-कोच के संबंधों की जटिलता को उजागर करता है। आज के दौर में खिलाड़ी केवल निर्देशों का पालन करने वाले नहीं होते; उनके पास अपनी राय होती है, और वे इसे सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने से भी नहीं डरते। यह पारदर्शिता जहां एक तरफ खेल को और दिलचस्प बनाती है, वहीं दूसरी तरफ टीम के भीतर तनाव भी पैदा कर सकती है।
इंटर मिलान ने इस सीज़न में अच्छी शुरुआत की है, और डिमार्को भी टीम के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने चैंपियंस लीग में अपने घरेलू मैदान सैन सिरो में इंटर के बेहतरीन रिकॉर्ड का भी जिक्र किया (पिछले 16 चैंपियंस लीग घरेलू मैचों में 13 जीत, 3 ड्रॉ, 2022 में बायर्न के खिलाफ आखिरी हार)। उनका कहना है कि इस साल टीम `वर्टिकैलिटी` (तेज, सीधे हमले) पर ज्यादा ध्यान दे रही है, लेकिन पिछली सीज़न की मूल बातें नहीं भूली है। यह दिखाता है कि डिमार्को टीम की वर्तमान दिशा और लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं, भले ही उन्हें अपनी पिछली मैच टाइमिंग को लेकर कुछ शिकायतें हों।
अंततः, यह देखना दिलचस्प होगा कि डिमार्को की यह `खुली बातचीत` उनके और टीम के प्रदर्शन को कैसे प्रभावित करती है। क्या उन्हें अब अधिक मैच टाइम मिलेगा और वह अपनी `पूरी क्षमता` दिखा पाएंगे, या यह मामला आधुनिक फुटबॉल में रणनीतिक बारीकियों और खिलाड़ी की महत्वाकांक्षा के बीच संतुलन साधने की एक और मिसाल बनकर रह जाएगा? फुटबॉल के मैदान पर `60 मिनट` का रहस्य अभी भी कायम है, और हर खिलाड़ी, हर कोच का इस पर अपना अलग दृष्टिकोण होता है।