डिजिटल दुनिया का जाल: जब गेमिंग बन जाती है ‘घातक लत’

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आज के दौर में वीडियो गेमिंग सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि एक पूरी दुनिया है। लेकिन, क्या इस रंगीन दुनिया के पीछे कोई गहरा अंधेरा भी छुपा है? एक नई रिसर्च ने “बिंग गेमिंग” के उन अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जो हमारे बच्चों, खासकर लड़कों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकते हैं।

बिंग गेमिंग: मनोरंजन की हदें कब होती हैं पार?

कल्पना कीजिए कि आप किसी ऐसे खेल में डूबे हैं, जहां समय का एहसास ही न रहे। घंटे-दो-घंटे नहीं, बल्कि लगातार पाँच घंटे या उससे भी ज़्यादा। इसे ही बिंग गेमिंग कहते हैं। यह आजकल के बच्चों और किशोरों के बीच एक आम चलन बन गया है, खासकर स्मार्टफोन और पीसी गेमिंग के आगमन के बाद। लेकिन, जो चीज़ कुछ समय पहले तक बस एक `शौक` लगती थी, अब `लत` के गंभीर संकेतों के साथ सामने आ रही है। समस्या सिर्फ गेम खेलने की नहीं है, बल्कि उस अवधि की है जिसके लिए कोई व्यक्ति लगातार स्क्रीन से चिपका रहता है।

हांगकांग से आई एक चौंकाने वाली रिसर्च

हाल ही में PLOS जर्नल में प्रकाशित एक हांगकांग-आधारित अध्ययन ने बिंग गेमिंग के प्रभावों पर नई रोशनी डाली है। 2022 में किए गए इस अध्ययन में हांगकांग के प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूलों के लगभग 2,000 छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया, जिनकी औसत आयु 12 वर्ष थी। शोधकर्ताओं का उद्देश्य यह समझना था कि लगातार गेमिंग का उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है।

दिलचस्प निष्कर्ष: अध्ययन में पाया गया कि 38% लड़कों ने खुद को बिंग गेमर बताया, जबकि लड़कियों में यह आंकड़ा सिर्फ 24% था। लेकिन इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि जो लड़के बिंग गेमिंग में लिप्त थे, उनमें इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर (IGD), डिप्रेशन, तनाव, नींद की खराब गुणवत्ता और `कम शैक्षिक आत्म-प्रभावकारिता` (यानी पढ़ाई में खुद को कम सक्षम समझना) के लक्षण लड़कियों की तुलना में कहीं ज़्यादा देखे गए।

आखिर लड़कों को ही ज़्यादा खतरा क्यों?

यह सवाल स्वाभाविक है। क्या लड़कों के दिमाग `डिजिटल डोपामाइन हिट्स` के लिए अलग तरह से तार-तार होते हैं, या शायद वे अपनी डिजिटल खोजों के प्रति `अधिक समर्पित` होते हैं? या फिर, इसका कारण सामाजिक दबाव और गेमिंग संस्कृति में गहरे निहित हो सकते हैं। अक्सर लड़कों पर दोस्तों के बीच `बेहतर` गेमर बनने या ऑनलाइन समुदायों का हिस्सा बनने का अधिक दबाव होता है। यह रिसर्च इस लिंग-आधारित असमानता के संभावित कारणों पर अधिक शोध की आवश्यकता को उजागर करती है।

बिंग गेमिंग के `गहरे` दुष्परिणाम

जब मनोरंजन एक जुनून बन जाता है, तो इसके कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं:

  • इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर (IGD): यह एक वास्तविक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जहाँ व्यक्ति गेमिंग को नियंत्रित नहीं कर पाता और यह उसके जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं (जैसे पढ़ाई, रिश्ते, काम) को बाधित करने लगता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर असर: डिप्रेशन, चिंता और तनाव आम समस्याएं हैं। स्क्रीन के सामने ज़्यादा समय बिताने से वास्तविक दुनिया से अलगाव महसूस हो सकता है।
  • नींद की गुणवत्ता में गिरावट: देर रात तक गेमिंग के कारण नींद पूरी नहीं होती, जिससे अगले दिन थकान, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी आती है।
  • शैक्षिक प्रदर्शन पर प्रभाव: `कम शैक्षिक आत्म-प्रभावकारिता` यानी अपनी पढ़ाई की क्षमता पर संदेह करना। गेमिंग में ज़्यादा समय देने से पढ़ाई पर ध्यान कम हो जाता है।
  • शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी जोखिम: लंबे समय तक एक ही जगह बैठे रहने से मोटापा, खराब मुद्रा और आंखों की समस्याएँ हो सकती हैं।

समाधान की ओर: एक संतुलित दृष्टिकोण

गेमिंग अपने आप में बुरी नहीं है। यह कौशल, रणनीति और समस्या-समाधान को बढ़ावा दे सकती है। लेकिन, किसी भी चीज़ की अति हानिकारक होती है। यह अध्ययन इंगित करता है कि IGD और बिंग गेमिंग से निपटने के लिए लिंग-विशिष्ट हस्तक्षेपों की आवश्यकता हो सकती है, क्योंकि लड़कों और लड़कियों पर इसके प्रभाव अलग-अलग दिख रहे हैं।

माता-पिता और शिक्षकों के लिए सुझाव:

  • जागरूकता बढ़ाएं: बिंग गेमिंग के खतरों के बारे में बच्चों और किशोरों को शिक्षित करें।
  • सीमाएं निर्धारित करें: स्क्रीन टाइम के लिए स्पष्ट नियम बनाएं और उन्हें लागू करें।
  • संतुलन को बढ़ावा दें: बच्चों को शारीरिक गतिविधियों, सामाजिक मेलजोल और रचनात्मक शौक में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • लक्षणों को पहचानें: यदि आपको डिप्रेशन, तनाव या चिड़चिड़ापन जैसे गंभीर लक्षण दिखते हैं, तो पेशेवर मदद लेने में संकोच न करें।
  • संवाद स्थापित करें: बच्चों से उनके गेमिंग अनुभवों के बारे में बात करें, उन्हें जज करने के बजाय सुनें।

यह हांगकांग अध्ययन सिर्फ एक प्रारंभिक संकेत है, लेकिन यह हमें भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी देता है। डिजिटल युग में, हमें यह समझना होगा कि प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के साथ-साथ, इसके संभावित जोखिमों से खुद को और अपने प्रियजनों को कैसे बचाया जाए। आखिर, डिजिटल दुनिया का जाल जितना आकर्षक है, उतना ही भ्रमित करने वाला भी हो सकता है।

रोहित कपूर

रोहित कपूर बैंगलोर से हैं और पंद्रह साल के अनुभव के साथ खेल पत्रकारिता के दिग्गज हैं। टेनिस और बैडमिंटन में विशेषज्ञ हैं। उन्होंने खेल पर एक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल बनाया है, जहां वे महत्वपूर्ण मैचों और टूर्नामेंटों का विश्लेषण करते हैं। उनके विश्लेषणात्मक समीक्षाओं की प्रशंसा प्रशंसकों और पेशेवर खिलाड़ियों द्वारा की जाती है।