दानिल मेदवेदेव: ‘सिक्स किंग्स स्लैम’ को न कहने का रहस्य और अंपायरों से मेरे ‘फुटबॉलर’ जैसे विवाद

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हाल ही में टेनिस जगत में एक खास टूर्नामेंट, `सिक्स किंग्स स्लैम`, ने खूब सुर्खियां बटोरीं। सऊदी अरब में आयोजित होने वाले इस प्रदर्शनी मैच में दुनिया के शीर्ष छह खिलाड़ियों को डेढ़ मिलियन डॉलर तक की भारी इनामी राशि मिलने की उम्मीद थी। ऐसे में, जब विश्व के 14वें नंबर के खिलाड़ी दानिल मेदवेदेव ने इसमें भाग लेने से इनकार कर दिया, तो कई लोगों को हैरानी हुई। लेकिन, मेदवेदेव ने अब अपनी चुप्पी तोड़ी है और इसके पीछे के असली कारणों का खुलासा किया है। यह कहानी सिर्फ एक टूर्नामेंट को छोड़ने की नहीं, बल्कि एक खिलाड़ी के सिद्धांतों, रणनीतिक सोच और खेल के प्रति उसके अनूठे दृष्टिकोण की है।

पैसा नहीं, प्राथमिकताएं हैं अहम

मेदवेदेव के फैसले को समझने के लिए, हमें उनकी बातों पर गौर करना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि `सिक्स किंग्स स्लैम` में सभी खिलाड़ियों के लिए डेढ़ मिलियन डॉलर की राशि तय नहीं थी; यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करती थी। साथ ही, उन्होंने अपनी रैंकिंग में गिरावट का जिक्र किया। मेदवेदेव ने स्वीकार किया कि उनकी पिछली रैंकिंग इतनी नहीं थी कि उन्हें शीर्ष छह खिलाड़ियों में सीधे आमंत्रित किया जाता। पिछले साल, राफेल नडाल को छोड़कर, केवल शीर्ष छह खिलाड़ियों को ही मौका मिला था। ऐसे में, उनके लिए इस टूर्नामेंट में शामिल होने का सवाल ही नहीं उठता था।

लेकिन, मुख्य कारण कुछ और था – प्रतिबद्धता। मेदवेदेव ने कजाकिस्तान के अल्माटी में होने वाले टूर्नामेंट के लिए पहले ही अपनी सहमति दे दी थी। उन्होंने कहा, “अगर मैंने किसी से समझौता किया है, तो मैं अपनी बात पर कायम रहता हूं। इसलिए, मैं यहां हूं और मुझे इसका कोई पछतावा नहीं।” यह दिखाता है कि एक खिलाड़ी के लिए सिर्फ पैसा ही सब कुछ नहीं होता, बल्कि विश्वसनीयता और जुबान का पक्का होना भी मायने रखता है। इसके अलावा, अल्माटी में खेलना उनके लिए रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे उन्हें रैंकिंग अंक हासिल करने और आधिकारिक मैचों में अपनी लय बनाए रखने का मौका मिलता। एक पेशेवर खिलाड़ी के लिए यह दोनों बातें बेहद अहम होती हैं।

अंपायरों से विवाद: एक `फुटबॉलर` की स्वीकारोक्ति

मेदवेदेव की बातचीत सिर्फ टूर्नामेंट के फैसलों तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने अंपायरों के साथ अपने अक्सर होने वाले विवादों पर भी खुलकर बात की। यह एक ऐसा पहलू है जो उन्हें अक्सर सुर्खियों में रखता है और उनके खेल का एक अभिन्न अंग बन चुका है।

उन्होंने बड़ी ईमानदारी से स्वीकार किया कि कोर्ट के बाहर वे सभी अंपायरों का बहुत सम्मान करते हैं और उन्हें `शानदार` मानते हैं। लेकिन, कोर्ट पर आते ही समीकरण बदल जाते हैं। मेदवेदेव ने कहा, “जब मैं कोर्ट पर होता हूं, तो भावनाएं हावी हो जाती हैं। मुझे लगता है कि मैं शायद एक टेनिस खिलाड़ी के बजाय एक फुटबॉलर बन जाता हूं।” उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे एक फुटबॉलर, जिसे फाउल के लिए पीला कार्ड दिखाया जाता है, वह भी चिल्लाता है कि कोई फाउल नहीं हुआ, भले ही उसने किसी की टांग तोड़ने की कोशिश की हो। मेदवेदेव ने स्वीकार किया कि उनके साथ भी कुछ ऐसा ही होता है – “हो सकता है कि कहीं न कहीं गलती मेरी हो, लेकिन मैं फिर भी अंपायर से कहता हूं कि गलती उनकी थी। यह अब ऐसे ही हो गया है।” यह एक मजेदार और आत्म-व्यंग्यात्मक टिप्पणी है जो उनकी व्यक्तित्व की एक अनोखी झलक दिखाती है।

नियमों में पारदर्शिता की चाहत, पर जटिलता की समझ

मेदवेदेव नियमों में अधिक पारदर्शिता चाहते हैं। उन्होंने शंघाई में हुई एक घटना का जिक्र किया, जहां उन्हें समय बर्बाद करने के लिए चेतावनी दी गई थी। हैरानी की बात यह है कि मेदवेदेव खुद को टूर के सबसे तेज़ खिलाड़ियों में से एक मानते हैं, खासकर अपनी सर्विस के दौरान। उन्होंने कहा, “मैं हर मैच में खड़ा होकर इंतजार करता हूं कि लोग मेरी सर्विस लेने के लिए तैयार हों। हर मैच में मैं तैयार रहता हूं और लगातार किसी का इंतजार करता हूं। और यहां मुझे अचानक चेतावनी मिल जाती है। इससे मैं निश्चित रूप से बौखला गया।”

हालांकि, वह इस बात को भी समझते हैं कि नियमों में पूरी पारदर्शिता लाना मुश्किल है क्योंकि इसमें हमेशा व्यक्तिपरकता का एक तत्व मौजूद रहेगा। उन्हें डर है कि अगर सब कुछ बदल दिया गया तो स्थिति और भी खराब हो सकती है। “तो फिर वहां कुछ भी समझ नहीं आएगा,” उन्होंने अपनी बात समाप्त की। यह दर्शाता है कि एक खिलाड़ी के रूप में, वे खेल की पेचीदगियों और मानवीय पहलू को गहराई से समझते हैं।

निष्कर्ष: एक खिलाड़ी, जो सिर्फ टेनिस ही नहीं, बल्कि `मानवीयता` भी खेलता है

दानिल मेदवेदेव का यह बयान हमें एक ऐसे खिलाड़ी से रूबरू कराता है जो सिर्फ अपनी प्रतिभा के लिए नहीं, बल्कि अपनी स्पष्टता, अपने सिद्धांतों और अपनी अनूठी व्यक्तित्व के लिए भी जाना जाता है। चाहे वह करोड़ों डॉलर के टूर्नामेंट को छोड़कर अपनी प्रतिबद्धता को निभाना हो, या अंपायरों के साथ अपने `अजीब` रिश्ते को ईमानदारी से स्वीकार करना हो, मेदवेदेव खेल को सिर्फ जीत और हार के चश्मे से नहीं देखते। वह इसे भावनाओं, सिद्धांतों और मानवीय जटिलताओं के साथ जीते हैं, जो उन्हें टेनिस कोर्ट पर और बाहर दोनों जगह एक दिलचस्प शख्सियत बनाते हैं। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि खेल सिर्फ नियमों और अंकों का नहीं, बल्कि व्यक्तित्व और चरित्र का भी एक मंच है।

धीरज मेहता

धीरज मेहता नई दिल्ली के एक खेल पत्रकार हैं जिन्हें बारह साल का अनुभव है। कबड्डी की स्थानीय प्रतियोगिताओं की कवरेज से शुरुआत करने वाले धीरज अब क्रिकेट, फुटबॉल और फील्ड हॉकी पर लिखते हैं। उनके लेख रणनीतिक विश्लेषण में गहराई से जाने के लिए जाने जाते हैं। वे एक साप्ताहिक खेल कॉलम लिखते हैं और लोकप्रिय खेल पोर्टल्स के साथ सक्रिय रूप से काम करते हैं।