बास्केटबॉल की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो खेल की रणनीति और मानवीय मनोविज्ञान के गहरे संगम को दर्शाते हैं। बोगदान तांजेविच उन्हीं में से एक हैं। 1999 में, जब इतालवी बास्केटबॉल टीम ने यूरोपीय चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता, तो उसके पीछे इस अद्वितीय कोच की दूरदृष्टि और अविश्वसनीय साहस था। त्रिएस्ते में अपनी पोती जूलिया के साथ, 70 के दशक के अनुभवी इस कोच ने अपने जीवन के उस साहसिक अध्याय को याद किया, जब उन्होंने यूरोपीय बास्केटबॉल के शिखर पर इटली को पहुंचाया था।
पॉज़ेको को बाहर करने का साहसिक निर्णय: एक `स्कैंडल` जो जीत का मार्ग बना
हर बड़ी सफलता की कहानी में एक मोड़ आता है, जो बाकी सबसे हटकर होता है। 1999 की यूरोपीय चैम्पियनशिप से पहले तांजेविच का सबसे विवादास्पद निर्णय था – **जियानमार्को पॉज़ेको**, उस समय के इटालियन लीग के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी, को टीम से बाहर करना। पॉज़ेको ने तब वर्से टीम को अप्रत्याशित चैंपियनशिप दिलाई थी और वह भीड़ के पसंदीदा थे।
“पॉज़ लीग का सबसे अच्छा खिलाड़ी था, उसने वर्से को स्कुडेटो दिलाया था… लेकिन वह वह प्लेमेकर नहीं था जिसकी उस इटली को ज़रूरत थी। मुझे अपने खिलाड़ियों से हमेशा उनके अहंकार पर थोड़ी छूट देने को कहा, मायर्स से मैंने डिफेन्स भी मांगा था।” – बोगदान तांजेविच
तांजेविच मानते थे कि पॉज़ेको निडर और तेज़ थे, लेकिन उनकी खेलने की शैली टीम की समग्र ज़रूरत के अनुरूप नहीं थी। टीम को मैदान पर चीज़ों को नियंत्रित करने के लिए एक अलग तरह के प्लेमेकर की ज़रूरत थी। तांजेविच के अनुसार, पॉज़ेको के लिए टीम को पूरी तरह से बदलना पड़ता, जो उस समय संभव नहीं था। इस फैसले ने शुरुआती तौर पर टीम के मनोबल और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, और इसे एक “स्कैंडल” माना गया। लेकिन तांजेविच ने कभी दबाव महसूस नहीं किया। उनके लिए, कोर्ट पर और जीवन में, **निर्णय तेज़ी से लेने होते हैं** – नतीजों से डरे बिना।

नकारात्मकता को शक्ति में बदलना: टीम वर्क का जादू
चैम्पियनशिप की शुरुआत इटली के लिए निराशाजनक रही। उन्होंने क्रोएशिया के खिलाफ एक “जीती हुई” बाज़ी गंवा दी। इसके बाद लिथुआनिया के खिलाफ भी उन्हें संघर्ष करना पड़ा। जीत की उम्मीदें कम लग रही थीं। लेकिन यही वह मोड़ था जहां तांजेविच की कोचिंग का जादू चला। क्वार्टर-फाइनल में रूस के खिलाफ मुकाबले से, टीम एकजुट होने लगी। खिलाड़ियों ने अपने अहंकार को किनारे रखकर एक साथ खेलना शुरू किया। यूगोस्लाविया और फिर फाइनल में स्पेन के खिलाफ भी, टीम ने शांत और आत्मविश्वास से भरपूर खेल दिखाया।
तांजेविच का मानना था कि टीम **12 खिलाड़ियों की एक सिम्फनी** होनी चाहिए, जहां हर खिलाड़ी अपने “अहंकार पर थोड़ी छूट” दे। उन्होंने **मायर्स** जैसे शानदार खिलाड़ी से न केवल आक्रमण, बल्कि सशक्त रक्षा की भी मांग की। उनकी रणनीति यह सुनिश्चित करने की थी कि हर खिलाड़ी खुद को विजेता महसूस करे, भले ही उनकी भूमिका कितनी भी छोटी क्यों न हो।
मैदान के बाहर का बौद्धिक: कोचिंग का मानवीय पहलू
तांजेविच को सिर्फ एक बास्केटबॉल कोच नहीं, बल्कि **बेंच का एक बुद्धिजीवी** माना जाता है। साहित्य और अध्ययन के प्रति उनका प्रेम उन्हें केवल खेल की रणनीति से परे सोचने में मदद करता था। वे कहते हैं, “यह लोगों के समूह का नेतृत्व करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी होता है… यह दूसरों के जीवन में प्रवेश करने जैसा है।”
उनकी कोचिंग का सार खिलाड़ियों की आकांक्षाओं, ज़रूरतों और डर को समझना था। वे इन डरों को अपने कंधों पर लेने और खिलाड़ियों को उनसे मुक्त करने में विश्वास रखते थे। उनके लिए, ईमानदारी और खिलाड़ियों के जीवन को गहराई से जानना ही उन्हें स्वाभाविक रूप से प्रोत्साहित करने का मार्ग था। यह सिर्फ खेल नहीं, जीवन का एक सबक था।
खिलाड़ियों को सशक्त बनाना: “मेरे पीछे मत छिपो!”
तांजेविच के कोचिंग दर्शन का एक और महत्वपूर्ण स्तंभ खिलाड़ियों को अपनी **जिम्मेदारी खुद लेने** के लिए प्रेरित करना था। वे अक्सर कहते थे, **”मेरे पीछे मत छिपो!”** उनका मतलब था कि मैच के आखिरी मिनटों में वे कोई जादू नहीं कर सकते। खिलाड़ियों को स्थिति को अपने हाथों में लेना होगा – या तो आप सफल होंगे या नहीं। प्रतीक्षा करने जैसा कुछ नहीं है, बस गेंद को शूट करो। वे चाहते थे कि खिलाड़ी “जिम्मेदारी” के बोझ से मुक्त होकर खेलें। शायद इसीलिए वे खिलाड़ियों को अखबार पढ़ने से भी रोकते थे!
युवा खिलाड़ियों को मौका देने के लिए भी तांजेविच में अदम्य साहस था। उन्होंने खुद 17 साल की उम्र में पहली टीम में शुरुआत की थी। उनका मानना था कि अगर उन्हें मौका मिला, तो उनके खिलाड़ियों को भी अच्छा करने का मौका क्यों नहीं मिलना चाहिए?

विरासत और वर्तमान
1999 की उस जीत ने इतालवी बास्केटबॉल को एक महत्वपूर्ण विरासत दी: **यूगोस्लाविया (और उसके उत्तराधिकारी सर्बिया) से न डरने का आत्मविश्वास।** चार साल में उस शानदार टीम के खिलाफ 9 मैचों में से 8 जीतने से टीम में एक नई आत्म-छवि विकसित हुई।
पॉज़ेको के साथ उनका रिश्ता अब दोस्ताना है। तांजेविच खुद पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पॉज़ेको के कोचिंग करियर शुरू करने पर उन्हें फोन करके कहा था, “पॉज़, अब तुम्हें वो सब कुछ करना होगा जो तुमने सोचा था, उसका ठीक उलटा।” पॉज़ेको खूब हंसे थे। यह एक महान कोच की परिपक्वता और मानवीय समझ को दर्शाता है।
तांजेविच ने डिनो मेनेघिन जैसे महान खिलाड़ियों को भी प्रशिक्षित किया, जिन्हें वे “शिष्टाचार, शिक्षा, विनम्रता और ईमानदारी के लिए एक शानदार राष्ट्रपति” मानते हैं।
आज की इतालवी टीम के बारे में, तांजेविच नई प्रतिभाओं को देखकर खुश हैं। टोनुट जैसे खिलाड़ियों की गति और रक्षात्मक क्षमता की कमी खलेगी, लेकिन नियांग और डियोफ जैसे युवा खिलाड़ी टीम को नई `ऊंचाई` देंगे।
बोगदान तांजेविच की कहानी सिर्फ बास्केटबॉल की जीत की कहानी नहीं है। यह नेतृत्व, साहसिक निर्णय, टीम वर्क के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का बलिदान, और मानवीय समझ के माध्यम से असाधारण परिणाम प्राप्त करने की एक प्रेरणादायक गाथा है। उनका दर्शन आज भी खेल और उससे परे, हर नेतृत्वकर्ता के लिए एक मूल्यवान सबक है।